Friday, August 22, 2014

कविता: पुलिस


एक मर्द को नामर्द बनने में 
कुछ ज़्यादा वक़्त नहीं लगता है 
जितना बड़ा ओहदा 
उतनी गुना जी हुज़ूरी 

कुछ नेता लोग देश की दलाली में 
पूरी सरकारी मशीनरी को खोखला कर देते हैं 
खुद को तो गिराते ही हैं गर्त में 
पुलिस और फ़ौज के 
कद को भी छोटा कर देते हैं 
मजबूर कर के 

कभी किसी पुलिस वाले की 
मर्दानगी जाग गयी गलती से
तो जितने भी दलाल होंगे 
जो सरकार में रह कर देश बेच रहे हैं 
उनको रौंद डालेगा 
मद से चूर गज की तरह 
हमेशा के लिए 

इस देश को 
एक और आज़ादी का इंतज़ार है 
इस बार चोर बाहर से नहीं 
लेकिन भगत सिंह, आज़ाद, गांधी, सुभाष 
तो चाहिए ही 

क्या पुलिस में सभी कमज़ोर होते हैं 
या अंतर आत्मा नेताओं के हाथ 
सौंप देते हैं
कसम तो देश की सेवा की ही लेते हैं आज भी 
वर्दी मिलने पर 

2 comments:

  1. कभी किसी पुलिस वाले की
    मर्दानगी जाग गयी गलती से
    तो जितने भी दलाल होंगे
    जो सरकार में रह कर देश बेच रहे हैं
    उनको रौंद डालेगा
    मद से चूर गज की तरह
    हमेशा के लिए
    बहुत बढ़िया

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