गुम हुआ हूँ या कि अँधेरे का शिकार हुआ हूँ
मैं खुद को छू कर भी ढूंढता रह गया
तेरे पहलु में बहारों की कमी तो नहीं
एक मुद्दत बाद मैं भी तैयार हुआ हूँ
चंद लम्हों की गुफ्तगू
इक उम्र की जुस्तजू
कितनी यादों की लहरें
कितने बीते दिनों के समंदर
सबसे पहले तुझसे मिलने की उम्मीद
सबके बाद भी लम्बा इंतज़ार
बेइन्तहा लम्बा सफर
कोई दरख्त भी नहीं छाँव देने को
कबसे गम है
कबसे गुम हूँ
किसे मालूम
गहरे में उतरे बिना
गहराई का इल्म
नामुमकिन है !
चंद लम्हों की गुफ्तगू
इक उम्र की जुस्तजू
कितनी यादों की लहरें
कितने बीते दिनों के समंदर
सबसे पहले तुझसे मिलने की उम्मीद
सबके बाद भी लम्बा इंतज़ार
बेइन्तहा लम्बा सफर
कोई दरख्त भी नहीं छाँव देने को
कबसे गम है
कबसे गुम हूँ
किसे मालूम
गहरे में उतरे बिना
गहराई का इल्म
नामुमकिन है !
waah kya baat hai!
ReplyDeleteThanks!
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeletesunder rachna par चाँद (moon) lamho , ki jagah चंद (few) hona chahiye
ReplyDeleteDone! Thanks!
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