Tuesday, July 22, 2014

बेलगाम अंधी दौड़


किसी का गारा किसी की ईंट 
ये क्या ईमारत बनाने का ख्वाब था 
उम्र भर समझता खुद को जवाब था 
मैं तो सबसे बड़ा सवाल था 

लम्बी डगर पर चलते चलते 
पीछे अपने क़दमों के निशान देख कर 
बहुत खुश था की वाह क्या मिसाल है 
मंज़िल पर पहुँच कर चौंक गया 
न परछाई थी न निशान थे 

अपनी पहचान अपना सपना 
न वो बनी न वो सच हुआ 
बस भीड़ में जो मैं गुम हुआ 
बस मोम के बुत सा मैं जम गया 
लोगों को रिझाने के शौक में 
दिल दिमाग भी सुन्न हुआ 

इक अंधी दौड़ में जुट गया 
जो हक़ था वो भी किधर गया 
सब चुक गया सब खो गया 
इक छोटी सी चूक से क्या हो गया 
भोली मुस्कान मासूम आँखे 
सब नकली मुखोटे में बदल गया 

मैं यहाँ गया मैं वहां गया 
जहाँ जाना था वो क्या हुआ 





11 comments:

  1. Awe-struck post, it's superb
    Good Wishes

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  2. ये मेरी हार हे या जीत

    मुझे समझ नहीं आती अब दुनिया की रीत

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  3. अपनी पहचान अपना सपना
    न वो बनी न वो सच हुआ
    बस भीड़ में जो मैं गुम हुआ
    बस मोम के बुत सा मैं जम गया
    लोगों को रिझाने के शौक में
    दिल दिमाग भी सुन्न हुआ
    बहुत बढ़िया

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  4. You sure are very talented and that too in many languages.

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  5. This comment has been removed by the author.

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