Thursday, April 17, 2014

ग़ज़ल: खामोश गुमसुम

मैख़ाना था साकी भी था जाम भी
फिर भी इक बूँद को तरस गए

कई बरस खामोश गुमसुम
कितने मौसम आये कितने गए

ताउम्र सब कुछ भुला दिया
तेरे ख्याल कुछ इस कद्र बस गए

इक राह इक ख्याल ये ज़िन्दगी
तुम कब पास आये तुम कब गए

तेरी महफ़िल तेरी नज़र के सामने
तेरी इक नज़र को तरस गए












4 comments:

  1. ...तेरी महफ़िल तेरी नज़र के सामने
    तेरी इक नज़र को तरस गए...Amazing indeed!!

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  2. बहुत खूब , शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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