कुछ तो लोगों का ख्याल कर लेते हैं
तेरे रकीब से ही बात कर लेते हैं
तनहा रास्तों से घबराना क्या
हम दरख्तों से बात कर लेते हैं
दर्द और ज़ख्म सब अपनी जगह
हम इसीको मरहम का नाम देते हैं
बिना ज़रुरत के तो पाँव भी नहीं हिलाते
शौकिया नहीं सिर्फ भूख में शिकार का दम लेते हैं
तुम से मिलने की अब भी जुस्तजू है
चले कई बार पर रस्ते ही मुकाम बदल लेते हैं
ज़मीन लपकने को कितने आतुर हैं
सूखे पत्ते शाख से आखिरी उड़ान लेते हैं
तेरे रकीब से ही बात कर लेते हैं
तनहा रास्तों से घबराना क्या
हम दरख्तों से बात कर लेते हैं
दर्द और ज़ख्म सब अपनी जगह
हम इसीको मरहम का नाम देते हैं
बिना ज़रुरत के तो पाँव भी नहीं हिलाते
शौकिया नहीं सिर्फ भूख में शिकार का दम लेते हैं
तुम से मिलने की अब भी जुस्तजू है
चले कई बार पर रस्ते ही मुकाम बदल लेते हैं
ज़मीन लपकने को कितने आतुर हैं
सूखे पत्ते शाख से आखिरी उड़ान लेते हैं
बहुत खूबसूरत गजल.
ReplyDeleteशुक्रिया राजीव
DeleteKya baat!
ReplyDeleteThanks Namrata
DeleteAwesome :)
ReplyDeleteThanks Julekha
Delete...behad khoobsurat! The opening lines are awesome!!
ReplyDeleteThanks Amit!
Deletevery nice....
ReplyDeleteThanks Om
Deletevery beautiful!
ReplyDeleteThanks Madhusudan!
Deletebeautiful
ReplyDeleteThanks
Deleteउम्दा
ReplyDeleteThanks!
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