Sunday, November 24, 2013

कभी तो थमेगा

गहराता हुआ अँधेरा
बढ़ता हुआ सन्नाटा
बैचेनी का समंद्र
अज्ञान का बवंडर
कभी तो थमेगा

साहिल से टकराती लहरें
रेत भरे किनारों को
बार बार थपेड़ते जगाते
एक ही बात समझाती हैं

जब फासले बहुत बढ़ जाते हैं
और मीलों दूर कि लहर किनारे
आ नहीं पाती
तब लहर लहर से टकरा कर
अपना पैगाम किनारे तक
है भिजवाती

लहरों से लहरों का टकराना
दूर की लहर का किनारे न पहुँच पाना
कभी तो थमेगा

3 comments:

  1. उम्मीद ही सहारा है।
    दिल से दिल के बढ़ते फ़ासले,
    हर पल होती तकरारें,
    कभी तो थमेंगी...
    रात ढलती है जैसे,
    वैसे ही निराशा का परचम,
    सुबह की लाली में,
    हौले-हौले झुकेगा।

    :)

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  2. Wow, amazing work. Loved the words and the flow.

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